- [ऐडम] नैवेल गॉडर्ड की

"फ़ीलिंग इज़ द सीक्रेट,"।

ऐडम हैमंड द्वारा पढ़ा गया।

इस खंड में, नेविल सफल रहे हैं

यह अंकित करने में कि कैसे

कल्पना तथा भावनाओं के माध्यम से

हम जानबूझकर या अनजाने में

बाहरी परिस्थितियों को ढालते हैं

अपने आंतरिक स्वभाव के ऐक्य के साथ।

यहाँ, उन्होंने हमें एक सरल सूत्र दिया है

अपनी आकांक्षाओं को सिद्ध करने के लिए।

यह 1944 में GMJ पब्लिशिंग

कंपनी द्वारा प्रकाशित की गयी।

यह रिकॉर्डिंग Master Key

Society का प्रोडक्शन है।

कॉपीराइट 2021 Master Key Society।

"बहुत सी किताबें बनाना, कोई

अंत नहीं," ऐकलेसिस्टास 12:12.

वह खुद को किसी भी कला

में पारंगत बना सकता है,

उसे लग जाने दो कुछ पढ़ने में जो अचूक

और निर्विवाद कार्य हो उसकी

कला पर जिसे बार बार पढ़े।

अपनी कला पर कई किताबें पढ़ना

सीखने के बजाय भ्रम पैदा

करता है, एक पुरानी कहावत।

प्राक्कथन।

यह पुस्तक संबंधित है

अपनी इच्छा को साधने की कला के साथ।

यह आपको तंत्र का लेखा-जोखा

देता है जो उपयोग हुआ

दृश्यमान दुनिया की प्रस्तुति में।

यह किताब छोटी है, पर मामूली कतई नहीं है।

इसमें खज़ाना छिपा है, जो

स्पष्टता से मार्ग परिभाषित करती

है सपनों को साकार करने हेतु।

क्या इसमें विश्वास किये जाने की संभावना है

कि तर्कसंगत तर्कों और

विस्तृत उदाहरणों के हिसाब से, यह किताब अपने आकार से कई गुना बड़ी है।

यद्यपि, ऐसा करना शायद ही कभी संभव होता है

लिखित बयानों या तर्कों के माध्यम से

निर्णय लेने में देरी करना

यह कहना हमेशा प्रशंसनीय लगता है कि

लेखक बेईमान या मिलाजुला था, और इसलिए उसके सबूत बिगड़े हुए थे।

फलस्वरूप,

मैंने जानबूझकर सभी तर्क और

प्रशंसापत्र विलुप्त कर दिए हैं

और केवल खुले विचारों

वाले पाठक को चुनौती दी है

चेतना के विधान का अभ्यास करने के लिए

जैसा कि इस पुस्तक में प्रकट किया गया है।

व्यक्तिगत सफलता कहीं अधिक

यथार्थपूर्ण साबित होगी

उन सभी पुस्तकों की तुलना में

जो इस विषय पर लिखी जा सकती हैं।

नेविल

अध्याय एक।

कानून और उसका संचालन।

दुनिया और उसके भीतर सब,

मनुष्य की सशर्त चेतना वस्तुनिष्ठ है।

चेतना मनोरथ है

साथ ही सत्व है पूरे विश्व का।

तो चेतना के लिए हम मुड़कर ही

सृष्टि के रहस्य की खोज करेंगे।

चेतना बोध का ज्ञान

और इस विधान के संचालन की विधि

जीवन में अपनी सभी इच्छाओं को

पूरा करने में सक्षम बनायेगी।

इस विधान के कार्यसाधक

ज्ञान के साथ सशस्त्र हो ,

आप एक आदर्श दुनिया का निर्माण

और उसे कायम रख सकते हैं।

चेतना ही एकमात्र वास्तविकता है, आलंकारिक तौर पर नहीं बल्कि वास्तविकता में।

यह वास्तविकता स्पष्टता के लिए हो सकती है, एक प्रवाह की तरह, जो दो

भागों में विभाजित है,

चेतना और अवचेतन।

चेतना के विधान को बुद्धिमानी

से संचालित करने के लिए,

संबंध समझना आवश्यक है

चेतना और अवचेतना के बीच।

चेतना निजी और एकाकी है,

अवचेतना औपचारिक और गैर-एकाकी है।

चेतना प्रभाव का केंद्र बिंदु है, अवचेतना कारण का केंद्र बिंदु है।

ये दो पहलू

सीमारेखा खींचते हैं पुरुष

और महिला की चेतनके बीच।

चेतन नर है, अवचेतन मादा है।

चेतन विचार को जन्म देता है

यह प्रभाव डालता है इन

विचारों का अवचेतन पर।

अवचेतन विचार प्राप्त करती है

और उन्हें आकार और भावाभिव्यक्ति देती है।

इस विधान के द्वारा सर्वप्रथम

किसी विचार की कल्पना करना

और फिर अवचेतना पर कल्पित

विचार को प्रभावित करते हुए, सभी चीजें चेतना से विकसित होती हैं।

और इस क्रम के बिना कुछ भी नहीं बनता

कि बनाया जाता है।

चेतना अवचेतना को प्रभावित करता है

जबकि अवचेतना व्यक्त करता है

वह सब जो उस पर प्रभावित है।

अवचेतना विचारों की उत्पत्ति नहीं करता है, लेकिन जिन्हें चेतना मन सच मानता है

सच होने लगता है और एक तरह से

केवल खुद के लिए जाना जाता है

स्वीकृत विचारों की पुष्टि करता है।

इसलिए उसकी कल्पना करने और महसूस

करने की शक्ति के माध्यम से

और विचार को चुनने की

उसको स्वतंत्रता मिलेगी,

सृष्टि पर मनुष्य का नियंत्रण है।

अवचेतना का नियंत्रण पूरा होता है

अपने विचारों और भावनाओं

के नियंत्रण के माध्यम से।

बहुत गहराई में छिपी है

सृष्टि की क्रियाविधि

अवचेतना का, स्त्री पहलू या सृष्टि का गर्भ।

अवचेतना तर्क से परे है

और प्रेरण से स्वतंत्र है।

यह भावना को अपने भीतर विद्यमान

एक तथ्य के रूप में देखता है

और इस धारणा पर इसे अभिव्यक्ति

देने के लिए आगे बढ़ता है।

रचनात्मक प्रक्रिया एक

विचार से शुरू होती है

और इसका चक्र एक भावना के रूप

में अपना पाठ्यक्रम चलाता है

और कार्य करने की इच्छा में समाप्त होता है।

अवचेतना पर विचार प्रभावित होते हैं

अनुभूति के माध्यम से।

अवचेतना पर कोई विचार

प्रभावित नहीं किया जा सकता

जब तक महसूस नहीं होता, पर

एक बार महसूस किया जाता है, अच्छा हो, बुरा हो या सामान्य, अवश्य व्यक्त किया जाना चाहिए।

अनुभूति ही एक मात्र माध्यम है

जिसके माध्यम से विचारों को

अवचेतना तक पहुँचाया जाता है।

इसलिए जो आदमी अपनी

भावनाओं पर काबू नहीं रखता

अवांछित अवस्थाओं से अवचेतना को

सरलता से प्रभावित कर सकता है।

भावना के नियंत्रण द्वारा

संयम या अपनी भावना का दमन नहीं है, बल्कि कल्पना करने और मनोरंजन

करने स्वयं को अनुशासित करना

केवल वही भावना जो आपकी

खुशी में योगदान करती है।

अपनी भावनाओं पर नियंत्रण बहुत जरूरी है

एक पूर्ण और सुखी जीवन के लिए।

कभी भी अवांछित भावना का मनोरंजन न करें

ना ही सहानुभूतिपूर्वक किसी भी

आकार या रूप के बाबत ग़लत सोचना।

अपनी या दूसरों की अपूर्णता पर ध्यान न दें।

ऐसा करना अवचेतना को प्रभावित करना है

इन सीमाओं के साथ।

जो आप नहीं चाहते वह आपके साथ किया जाए

यह मत सोचो कि यह तुम्हारे या

किसी और के साथ किया गया है।

यही संपूर्ण और सुखी जीवन

का संपूर्ण मूलमंत्र है।

बाकी सब प्रवचन है।

हर एक भावना एक अवचेतनछाप निर्मित करती है

और जब तक इसकी प्रतिक्रया नहीं होती

एक विपरीत प्रकृति में जब

तक ज़्यादा शक्तिशाली भाव

व्यक्त होना सुनिश्चित हो।

दो भावनाओं में प्रबल

वह है जो व्यक्त हुई है।

मैं स्वस्थ हूँ एक प्रबल भाव

है बजाय कि मैं स्वस्थ रहूँ गा।

इस अहसास की स्वीकारोक्ति

करूँगा, कि मेरा वजूद नहीं है।

मैं बलशाली हूँ बजाय मैं नहीं हूँ ।

आप जो अहसास करते हैं

वह हमेशा प्रबल रहता है

आप जो अहसास करते हैं आप उसी रूप में होंगे, अतएव यह समझने के लिए इस इच्छा

की दशा का अहसास होना ज़रूरी है

बजाय इसके कि उस अवस्था का ना होना।

इसका बोध अभिव्यक्ति को बढ़ाता है

और इसकी बुनियाद पर ही

सारी अभिव्यक्ति निर्भर है।

अपनी मनोदशा और भावनाओं

को लेकर सचेत रहना होगा,

क्योंकि दोनों के बीच एक अटूट रिश्ता है

आपकी भावनाओं और आपकी

प्रत्यक्ष दुनिया के बीच।

आपका शरीर एक भावनात्मक शुद्धि का माध्यम है

और जो धारण करता है आपकी

प्रचलित भावनाओं के अचूक निशान।

भावनात्मक बिछोह खासतौर पर दबी हुई भावनाएं

सभी बीमारियों स्रोत है।

कुछ गलत होने के बारे में तत्काल महसूस होना

वह भावना व्यक्त हुए बिना

शुरुआत है बीमारी की,

शरीर और पर्यावरण दोनों के विकार में।

अपने भीतर आत्मग्लानि और

विफलता का भाव ना आने दें

निराशा या विरक्ति को ना आने

दें अपने लक्ष्य के रास्ते में

बीमारी में।

केवल उस अवस्था का अहसास करें

जिसे आप महसूस करना चाहें।

मनोदशा जो चाहे उस अवस्था का अहसास करें

और उस प्रतिबद्धता में जीना और कर्म करना

ही रास्ता है सभी विदित चमत्कारों का।

अभिव्यक्ति के सारे बदलाव अवतरित होते हैं

भावों में बदलाव के ज़रिए।

भावों में बदलाव का आशय है तकदीर में बदलाव।

सभी उत्पत्तियाँ अवचेतन के

केंद्र में घटित होती हैं।

जो आपको प्राप्त करना होगा

अपने भावों को नियंत्रित करके

अवचेतन के परिचालन में,

इससे आपके विचार और भाव नियंत्रित हैं।

मौका या दुर्घटना इसके

लिए उत्तरदायी नहीं होगी

उन चीजों के लिए जो घटित होती

हैं अपने पूर्वार्ध भाग्य से

जोकि रचेयिता है आपके

भाग्य या दुर्भाग्य का।

आपके अवचेतन का प्रभाव

निर्धारित करता है आपकी दुनिया की दशाओं का।

अवचेतन एकाकी नहीं है,

यह औपचारिक है और व्यक्तियों

का आदर करने वाला नहीं है।

अवचेतनका कोइ ताल्लुक नहीं है

आपकी भावनाओं के सच या पाखंड से।

यह हमेशा उस सच को स्वीकार

करता है जिसे आप सच मानते हैं।

भावना अवचेतन का द्योतक है

उस सत्य के अनुरूप जो एक घोषित सत्य है।

अवचेतन के इस गुण की वजह से ही, मनुष्य के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।

इंसान के मन में जो भी होगा

उसे आत्मसात और सच का अहसास, अवचेतन इसे वस्तुनिष्ठ बनाती है।

आपकी भावनाएं एक सिलसिला शुरू करती है

जिसमें आपकी दुनिया निहित है

और भावना में बदलाव सिलसिले में बदलाव है।

अवचेतन कभी भी प्रकट

करने में नाकाम नहीं होती

जो बहुत महत्वपूर्ण होती है।

जिस क्षण यह प्रभाव प्राप्त करती है, यह अपनी अभिव्यक्ति के तरीकों

पर काम करना शुरू कर देती है।

यह उस भावना के महत्त्व को

स्वीकार करती है, आपकी भावनाओं को

एक तथ्य के रूप में, जो आपमें

निहित हैं और तत्काल तय करता है

बाहरी या वस्तुनिष्ठ

दुनिया में उत्पत्ति के लिए

उस सटीक भावना की पसंदगी के लिए।

अवचेतन स्वीकार्य मान्यताओं

को कभी नहीं बदलती

यह चित्रि करता है उनके अंतिम विवरण को

चाहे वे लाभकारी हों या ना हों।

अवचेतन पर प्रभाव डालते

एक वांछित दशा के अनुरूप,

आपमे यह भाव होना चाहिए कि यह आपका है

जिसका आपको पहले ही एहसास हो चुका था।

अपने लक्ष्य को परिभाषित करने में, आपको सिर्फ़ उद्देश्य से ही तालुक रखना होगा।

इसमें जो भी प्रकट भाव या मुश्किलें होंगी, इन पर आपने नहीं सोचना है।

किसी भी दशा में भावनाओं पर विचार के लिए

अवचेतन पर इसका प्रभाव पड़ता है।

इसलिए, यदि इसमें कठिनाइयाँ, अवरोध या देरी हो तो तो

अवचेतन गैर-एकाकी प्रवृत्ति से

कठिनाइयों और अवरोधों की

भावना को स्वीकार करता है

आपके आग्रह पर आगे बढ़ते

हुए उन्हें प्रस्तुत करना

आपकी बाहरी दुनिया में।

अवचेतन सृष्टि का गर्भ केंद्र है।

यह विचार को आत्मसात करता है है

मनुष्य की भावनाओं के माध्यम से।

यह प्राप्त विचार को कभी नहीं बदलता है, लेकिन यह हमेशा इसे एक आकार देता है।

इसलिए अवचेतन विचार का चित्र बनाता है

और उसी छवि से भावना प्रकट होती है।

इससे मनोदशा अथवा असंभवता

प्रभावित करती है असफलता

के विचार के तौर पर।

यद्यपि अवचेतन ईमानदारी से

मनुष्य की सेवा करती है,

इससे यह अर्थ नहीं निकालना चाहिए कि

यह मालिक का सेवक है जोकि

प्राचीनतम कल्पना है।

प्राचीन पैगंबर इसे मनुष्य

का गुलाम और सेवक कहते थे।

सेंट पॉल ने इसे एक महिला

के तौर पर बताया है,

"महिला को पूरी तरह से

पुरुष के अधीन होना चाहिए।"

अवचेतन मनुष्य की सेवा करती है

और ईमानदारी से उनकी

भावनाओं को आकार देती है।

यद्यपि, अवचेतन में दुर्लभ अरुचि होती है

बाध्यता और विनय-अनुनय का जवाब देने

बजाय उसे नियंत्रित करने के।

परिणामस्वरूप यह प्रिय पत्नी जैसा होता है

जो सेवक से अधिक होता है।

पति पत्नी का मुखिया है, Ephesians 5, यह पुरुष और महिला के

मामले में सही नहीं हो सकता

उनके सांसारिक रिश्तों के मद्देनज़र, लेकिन यह सच है चेतन और अवचेतन के मुतल्लिक

या अभिज्ञता के नर और

मादा पहलुओं के मद्देनज़र।

जिस रहस्य का पॉल ने अपने

लेखन में ज़िक्र किया था,

"यह एक महान रहस्य है।

" जो अपनी पत्नी से प्यार करता

है, अपने आप से प्यार करता है

"और वे दो जिस्म एक जान हैं,"

यह स्पष्ट तौर पर चेतनका रहस्य है।

चेतन वाकई में एक है और अविभाजित है

लेकिन सृष्टि के लिए यह दो

भागों में बंटा हुआ लगता है।

चेतना , वस्तुनिष्ठ या नर पहलू का मुखिया है

और अवचेतना, विषयक या

स्त्रीलिंग पहलू पर प्रबल है।

हालाँकि, इसका नेतृत्व निरंकुश नहीं, बल्कि प्रेम करने वाला होता है।

तो आपकी भावनाओं को समझते हुए

जहाँ आप पहल इसे अपने लक्ष्य

को निर्धारित किये हुए हैं, अवचेतन निर्मित करने को आगे बढ़ती है

आपकी सही पसंदगी के आधार पर।

आपकी इच्छाएँ अवचेतन के

तौर पर स्वीकार्य नहीं हैं

जब तक आपको वास्तविक

भावनाओं का अहसास नहीं होता, मात्र उस भावना को लिए जिसमें

विचार अवचेतन में स्वीकार्य है

और मात्र इस अवचेतन की

स्वीकार्यता के माध्यम से

जो पहले व्यक्त किया गया है।

दुनिया की घटनाओं पर अपनी

भावना व्यक्त करना सरल है

बजाय यह स्वीकार करना कि विश्व की स्थितियों

का आपकी भावना को प्रतिबिंबित करना।

हालाँकि, यह शाश्वत सत्य है

कि आपका बाहरी स्वरूप दर्पण

है आपकी आतंरिक भावनाओं का, "हमारे मन का दूसरों पर प्रभाव पड़ता है।"

आदमी कुछ नहीं प्राप्त कर सकता, जब तक कि वह उसे स्वर्ग

से नहीं प्राप्त होता।

और स्वर्ग का साम्राज्य आपके भीतर ही है।

बाहर से कुछ नहीं आता,

सब कुछ भीतर से आता है,

अवचेतना से।

आपके लिए इसे देखना असंभव है

अपनी चेतन संबंधी सामग्रियों के अलावा।

आपकी दुनिया इसके हर विवरण में है

क्या आपकी चेतन वस्तुनिष्ठ है।

वस्तुनिष्ठ अवस्थाएँ अवचेतना के

प्रभावों की साक्षी होती हैं।

भाव के परिवर्तन से अभिव्यक्ति

में परिवर्तन होता है।

अवचेतना सत्य के रूप में स्वीकारी जाती है

जो आपको सत्य लगता है

और क्योंकि सृष्टि

अवचेतना के प्रभावों का परिणाम है, आप अपनी भावना से सृष्टि

निर्धारित करते हैं।

आप स्वयं मे वही हैं जो आप बनना चाहते हैं

और इस पर विश्वास करने

से आपकी उदासीनता के पीछे

मात्र यही है वजह है कि आप

इसे नहीं देख नहीं पाते।

उसके बाहर तलाश

जिसे तुम नहीं समझते कि

तुम व्यर्थ हो, करते हुए

वह हमें कभी नहीं मिलता, जो हम चाहते हैं

हमें वही मिल पाता है वास्तव में जो हम हैं।

संक्षेप में, आप जो व्यक्त

करते हैं, केवल वही है

जिसके होने या अस्तित्व

आप धारण किये हुए हैं।

"उसके पास और बहुतायत होगी।"

इंद्रियों के प्रमाण को नकारना

और मनोकामना पूर्ण होने की

भावना को विनियोजित करना

आपकी इच्छा की प्राप्ति का मार्ग है।

अपने विचारों और भावनाओं

पर आत्म-नियंत्रण की महारथ

आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।

हालाँकि, जब तक पूरे आत्मनियंत्रण

कि स्थिति नहीं होती,

प्रदर्शन के बावजूद भी,

आप जो महसूस करना चाहते हैं उसके

लिए नींद लें, प्रार्थना करें

अपनी वांछित अवस्थाओं को

साकार करने में सहायता के लिए।

ये अवचेतना में दो प्रवेश द्वार हैं।

अध्याय दो।

नींद।

नींद, पृथ्वी पर जीवन के एक

तिहाई हिस्से को घेरे हुए है

जो अवचेतन का प्राकृतिक द्वार है।

तो यह नींद ही है जिससे हमारा यह नाता है।

पृथ्वी पर हमारे जीवन की दो-तिहाई चेतन

को मापा जाता है उस ध्यान की

डिग्री जो हम नींद को देते हैं।

नींद जो प्रदान करती है, इसके

बारे में जानकर आने वाला आनंद

हमें प्रतीक्षा कराता है

एक के बाद दूसरी रात की

मानो हमारा प्रेमी के साथ

अपॉइंटमेंट तय हो रहा हो।

"रात के स्वप्न में,

"जब मनुष्यों को गहरी नींद आती है, "और वे अपने बिछौने पर विश्राम करते हैं; "तब वह मनुष्यों के कान कोलता है

"और निर्देशों पर मुहर लगाता है," Job 33

नींद में हों , प्रार्थना कर

रहे हों, सोने के सामान ही

वह आदमी अपने प्रभाव बनाने के

लिए अवचेतन में प्रवेश करता है

और उसके निर्देश प्राप्त करता है।

इन अवस्थाओं में चेतन और अवचेतन

रचनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं, नर और मादा एक तन बन जाते हैं।

नींद वह समय है जब पुरुष या चेतना मन

इंद्रियों की दुनिया से मुड़कर

तलाश करता है अपने प्रेमी की

या अवचेतना स्व की।

अवचेतना, दुनिया की महिला के विपरीत

जो उसे बदलने के लिए

अपने पति से शादी करती है

उसकी चेतना जाग्रत अवस्था को

बदलने की कोई इच्छा नहीं है, पर

वैसे ही प्यार है जैसे ईमानदारी

से समानता को पुन: पेश करना

स्वरूप की बाहरी दुनिया में।

आपके जीवन की परिस्थितियाँ और घटनाएँ

आपके बच्चे हैं जो आकार लेते हैं सांचे से

नींद में आपके अवचेतन प्रभावों के।

वे बने हैं छवि और समानता से

आपकी सबसे भीतर की भावना से

कि वे आपको प्रकट कर सकते हैं

अपने आप को।

जैसे स्वर्ग में वैसे ही पृथ्वी पर।

जैसे अवचेतन में वैसे ही पृथ्वी पर।

सोते समय आपके पास जो कुछ भी चेतन में है

आपकी अभिव्यक्ति का पैमाना है

पृथ्वी पर अपने जीवन के दो तिहाई जागरण में।

आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त

करने से कोई नहीं रोक सकता

अपनी विफलता को यह महसूस करके

बचाएं कि आप पहले से ही वह हैं

जो आप बनना चाहते हैं

या यह कि आपके पास पहले से ही वह वस्तु है।

आपकी अवचेतना आपकी

इच्छाओं को स्वरूप देती है

केवल तभी जब आपको लगे कि

आपकी इच्छा पूरी हो गई है।

नींद की अचेतावस्था

अवचेतना की सामान्य अवस्था है

क्योंकि सभी चीज़ें आपके भीतर से आती हैं

और आपकी स्वयं की अवधारणा

निर्धारित करती है कि क्या आता है।

आपको हमेशा मनोकामना पूरी

होती महसूस होनी चाहिए

आपके सोने से पहले।

आप कभी भी अपनी गहराई से बाहर नहीं निकलते

कि आप जो चाहते हैं, आप हमेशा

वही खाका खींचते हैं जो आप हैं

और आप वही चाहते हैं जो आप

खुद के लिए महसूस करते हैं

साथ ही वह जो आप दूसरों के

बारे में महसूस करते हैं।

तब साकार होने के लिए,

इच्छा का समाधान होना चाहिए

होने या होने या साक्षी होने की भावना में

अवस्था की मांग की।

मुकम्मल किया जाता है

मनोकामना पूर्ण होने के भाव के चलते।

प्रश्न के उत्तर में जो भाव आता है, "अगर मेरी इच्छा पूरी

होती तो मुझे कैसा लगता"

वह भावना है जिस पर एकाधिकार होना चाहिए

और ध्यान स्थिर करना जब आप

नींद में आराम करते हैं।

आपको होने या होने की चेतना में होना चाहिए

जो आप बनना चाहते हैं या होना चाहते हैं

आपके सोने से पहले।

सो जाने के बाद, मनुष्य को

चयन की स्वतंत्रता नहीं होती।

नींद हावी हो जाती है

स्वयं की अपनी अंतिम

जाग्रत अवधारणा के द्वारा।

इसलिए यह इस प्रकार है कि

उसे हमेशा मान लेना चाहिए

उपलब्धि और संतुष्टि की भावना

जब वह नींद में चला जाता है।

गायन और धन्यवाद के साथ मेरे सामने आओ।

धन्यवाद के साथ उसके द्वार में प्रवेश करो

और उसके दरबार में स्तुति के साथ।

सोने से पहले आपकी मनोदशा

आपकी चेतना की अवस्था को परिभाषित करती है

जैसे ही उपस्थिति में प्रवेश

करते हैं अपने चिरस्थायी प्रेमी, अवचेतन की।

वह आपको ठीक वैसे ही देखती है

जैसे आप खुद को महसूस करते हैं।

यदि आप सोने की तैयारी कर रहे होते हैं, आप सफलता की चेतना को ग्रहण

करते हैं और बनाए रखते हैं

यह महसूस करके कि मैं सफल हूँ, आपको अवश्य ही सफल होना चाहिए।

पीठ के बल लेट जाएं

अपना सिर शरीर के साथ एक स्तर पर सीधा रखें, महसूस करें कि आप अपनी

इच्छा के अधिकार में थे

और चुपचाप अचेतना में आराम करो।

इस्राएल का रखवाला ना ऊंघेघा

ना आंखें नींद से बन्द करेगा।

फिर भी, वह अपनी प्यारी नींद देता है।

अवचेतना कभी नहीं सोती।

नींद वह द्वार है जिसके द्वारा

चेतना मन जाग्रत करता है

अवचेतना में रचनात्मक रूप से जुड़ने के लिए।

नींद रचनात्मक कार्य को परदे में रखती है

जबकि वस्तुनिष्ठ दुनिया इसे प्रकट करती है।

नींद में आदमी अवचेतना को प्रभावित करता है

अपनी खुद की धारणा के साथ।

और कितना सुंदर वर्णन है

चेतना और अवचेतना के इस रोमांस का

जो सोलोमन के गीत में वर्णित है।

"रात में बिस्तर पर, उसे ढूंढा

जिसे मेरी आत्मा प्रेम करती है।

"मैंने उसे पाया जिसे

मेरी आत्मा प्यार करती है।

"मैंने उसे पकड़ लिया और

मैं उसे जाने नहीं दूँगा"

"जब तक मैं उसे अपनी माँ

के घर में नहीं ले आता"

"और उसके चेंबर में जहाँ

उसने धारण किया था।"

सोने की तैयारी आप खुद महसूस करें

उत्तर की इच्छा पाने की अवस्था में

और फिर अचेतना में आराम करने की।

आपकी साधित इच्छा वह है जिसे आप चाहते हैं।

रात को अपने बिस्तर पर

आप इच्छा पूरी होने की भावना चाहते हैं

कि आप उसे अपने साथ कक्ष में ले जाओ

उसके बारे में जिसने धारण

किया था, नींद या अवचेतना में

जिसने आपको यह स्वरूप दिया कि यह इच्छा

अभिव्यक्ति भी दी जा सकती है।

यह आपकी इच्छाओं को खोजने

और संचालित करने का तरीका है

अवचेतना में।

अपने आप को साकार इच्छा

की अवस्था में महसूस करें

और शान्ति से सो जाओ।

रात के बाद रात होने का एहसास होना चाहिए, साक्षी होने के लिए जिसे

आप अपने पास रखना चाहते हैं

और अभिव्यक्त होते देखें।

निराश या असंतुष्ट महसूस

करते हुए कभी भी ना सोएँ।

असफलता की चिता में कभी ना सोएँ।

आपकी अवचेतना जिसकी

प्राकृतिक अवस्था नींद है,

आपको वैसा ही दिखाती है

जैसा आप खुद को मानते हैं,

और चाहे वह अच्छा हो,

बुरा हो, या सामान्य हो,

अवचेतना ईमानदारी से आपके

विश्वास को मूर्त रूप देगी।

जैसा आप महसूस करते हैं, वैसा

ही आप उसे प्रभावित करते हैं।

और वह आदर्श प्रेमिका इन

प्रभावों को आकार देती है

और दर्शाता है उनको उसके

दुलारे बच्चों की तरह।

तुम बिल्कुल निष्पक्ष हो, मेरे प्रिय, तुम में कोई जगह नहीं है।

मन में यही दृष्टिकोण लाना है

सोने के लिए जाने से पहले।

दिखावे की उपेक्षा करें

और महसूस करें कि चीज़ें

जैसी तुम उन्हें चाहो,

क्योंकि वह चीज़ों को चुनता है

जोकि वैसी दिखती नहीं जैसे वे होती हैं

और अदृश्य दिखाई पड़ता है।

संतुष्टि की भावना ग्रहण करने के लिए

शर्तों को अस्तित्व में बुलाना है

जो संतुष्टि का दर्पण होगा।

संकेत अनुसरण करते हैं, वे

पूर्ववर्तिता नहीं होते।

प्रमाण है कि तुम चेतना को फॉलो करोगे

वो आप हैं,

यह पूर्ववर्तिता नहीं होगा।

आप शाश्वत स्वप्नद्रष्टा हैं जो

गैर-आंतरिक सपने देख रहे हैं।

आपके सपने आकार लेते हैं

जब आप उनकी वास्तविकता

की भावना महसूस करते हैं।

अपने आप को अतीत तक सीमित ना रखें।

यह जानते हुए कि चेतना के

लिए कुछ भी असंभव नहीं है,

अतीत के अनुभवों से परे अवस्थाओं

की कल्पना करना शुरू करें।

मनुष्य का मन जो कल्पना करता है, मनुष्य उसे महसूस कर सकता है।

सभी वस्तुनिष्ठ प्रकट

अवस्थाएं पहले व्यक्तिपरक थी

अदृश्य अवस्थाएं,

और आपने उन्हें साक्षात बुलाया

उन्हें वास्तविक मानते हुए।

रचनात्मक प्रक्रिया पहले कल्पना कर रही है

और फिर अवस्था की कल्पना पर विश्वास करना।

हमेशा कल्पना करें और

सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा करें।

दुनिया नहीं बदल सकती

जब तक आप इसके बारे में

अपनी धारणा नहीं बदलते।

जैसे भीतर वैसा ही बाहर से।

राष्ट्र के साथ-साथ लोग

केवल वही हैं जो आप उन्हें मानते हैं।

समस्या चाहे कैसी भी

हो, चाहे वह कहीं भी हो,

कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह किससे संबंधित है

आपके पास बदलने के लिए

कोई नहीं है बल्कि आप हैं

और तुम्हारा न तो विरोधी है और न ही सहायक

अपने भीतर परिवर्तन लाने में।

आपके पास कुछ नहीं है, खुद को

सचाई से अवगत कराने के बजाय

जिसे आप प्रकट होते हुए देखना चाहते हैं।

जैसे ही आप खुद को समझाने

में सफल हो जाते हैं

अवस्था की वास्तविकता की मांग, परिणाम अनुसरण करते हैं आपके

निश्चित विश्वास की पुष्टि करने।

आप कभी दूसरे को उस अवस्था का

सुझाव नहीं देते जो आप चाहते हैं

उसे व्यक्त देखने के लिए।

इसके बजाय, आप अपने को विश्वास

दिलाते हैं कि वह पहले से ही है

कि जो आप चाहते हैं कि वह हो।

आपकी मनोकामना पूर्ण होती है

मनोकामना पूर्ण होने की अनुभूति मानकर।

आप तब तक असफल नहीं होते जब तक

खुद को समझाने में असफल ना हों

आपनी चाहत की हकीकत को।

अभिव्यक्ति के बदलाव से विश्वास

के बदलाव की पुष्टि होती है।

हर रात जब तुम सो जाते हो,

संतुष्ट और बेदाग महसूस करते हुए

वस्तुनिष्ठ प्रेमी के लिए हमेशा

उद्देश्यपूर्ण दुनिया बनती है

और आपकी अवधारणा की छवि और समानता, आपकी भावना से परिभाषित अवधारणा।

पृथ्वी पर आपके जीवन का दो-तिहाई जागना

कभी पुष्टि करता है या गवाही देता है

आपके अवचेतना प्रभावों के लिए।

दिन के कार्य और घटनाएँ प्रभाव हैं, वे कारण नहीं हैं।

स्वतंत्र इच्छा केवल पसंद की स्वतंत्रता है।

आज चुन लो कि तुम किसकी सेवा करोगे

आप जिस तरह की मनोदशा चाहते

हैं, चुनने को आप स्वतंत्र हैं, लेकिन मनोदशा की अभिव्यक्ति

अवचेतना का रहस्य है।

अवचेतना इंप्रेशन प्राप्त करती है

केवल मनुष्य की भावनाओं के माध्यम से

और एक तरह से केवल खुद के लिए जाना जाता है

इन प्रभावों को रूप और अभिव्यक्ति देता है।

मनुष्य के कर्म निर्धारित होते हैं

अपने अवचेतना प्रभावों से।

स्वतंत्र इच्छा का भ्रम, विश्वास

और कार्य करने की स्वतंत्रता

लेकिन उन कारणों की अज्ञानता

है जो उससे कार्य कराते हैं।

वह अपने आप को स्वतंत्र समझता

है क्योंकि वह कड़ी भूल गया है

अपने और घटना के बीच की।

जाग्रत मनुष्य की अभिव्यक्ति की विवशता है

उसकी अवचेतना का प्रभाव।

अगर अतीत में उसने अनजाने

में खुद को प्रभावित किया,

फिर उसे अपने विचार और

भावना को बदलना शुरू कर दें

क्योंकि जैसा वह करेगा, वैसा

ही वह अपनी दुनिया को बदलेगा।

पछतावे में एक पल भी बर्बाद ना करें

अतीत की गलतियों के बारे

में गंभीरता से सोचने के लिए

अपने आप को पुन: संक्रमित करना है।

मुर्दे को मुर्दा दफ़नाने दो।

दिखावे से परे हो जाएँ

और उस एहसास को मान लें जो आपका होगा

क्या आप पहले से ही वही

थे जो आप बनना चाहते हैं।

एक अवस्था को महसूस करने

से वह अवस्था पैदा होती है।

विश्व मंच पर आप जिस

पार्टी में मंचन करते हैं

आपकी स्वयं की अवधारणा

से निर्धारित होता है।

आपकी मनोकामना पूर्ण होने का एहसास

और चुपचाप नींद में आराम,

आपने खुद को एक स्टार की

भूमिका में कास्ट किया

कल धरती पर खेला जाएगा।

और सोते समय,

आपको अपनी ओर से पूर्वाभ्यास

और निर्देश दिया जाता है।

अंत की स्वीकृति

प्राप्ति के साधन स्वतः

प्राप्त हो जाते हैं।

इस बारे में कोई गलती ना करें।

यदि, जब आप सोने की तैयारी करते हैं, आप चेतना से खुद को महसूस नहीं करते

उत्तर की इच्छा की अवस्था में, तब तुम अपने साथ कक्ष में ले जाओगे

उसके बारे में जिसने धारण किया, प्रतिक्रियाओं और भावनाओं का कुल योग

जागने के दिन का,

और सोते समय तुम्हें इस

रीति से निर्देश दिया जाएगा

जिसमें उन्हें कल व्यक्त किया जाएगा।

आप यह मानते हुए उठेंगे

कि आप एक मुक्त एजेंट हैं,

इस बात का एहसास नहीं कि

दिन की हर क्रिया और घटना

सोते समय आपकी स्वयं की अवधारणा

से पूर्व निर्धारित होती है।

आपकी एकमात्र स्वतंत्रता तब

प्रतिक्रिया की स्वतंत्रता होगी।

आप यह चुनने के लिए स्वतंत्र

हैं कि आप कैसा महसूस करते हैं

और दिन के नाटक पर प्रतिक्रिया करें, लेकिन नाटक, क्रियाएँ, घटनाएँ, और दिन की परिस्थितियाँ पहले

ही निर्धारित की जा चुकी हैं।

जब तक आप होशपूर्वक और

जानबूझकर परिभाषित नहीं करते

मन की वह मनोवृत्ति जिसके

साथ आप सो जाते हैं,

आप अनजाने में समग्र

मनोवृत्ति में सो जाते हैं

दिन की सभी भावनाओं और

प्रतिक्रियाओं से बना मन।

हर प्रतिक्रिया एक अवचेतना प्रभाव डालती है

और जब तक कि किसी विरोधी

द्वारा प्रतिकार न किया जाए

और अधिक प्रभावशाली भावना

भविष्य की कार्रवाई का कारण है।

विचार आच्छादित और भावना

रचनात्मक क्रियाएं हैं।

अपने दिव्य अधिकार का

बुद्धिमानी से उपयोग करें।

आपकी सोचने और महसूस करने

की क्षमता के माध्यम से

सारी सृष्टि पर आपका अधिकार है।

जबकि आप जाग रहे होते हैं,

आप अपने बगीचे के लिए

बीज चुनने वाले माली हैं,

परन्तु गेहूँ का एक दाना

भूमि में गिरकर मर जाता है, यह अकेला रह जाता है।

लेकिन मरने पर बहुत सा फल लाता है।

जैसे ही आप सो जाते हैं,

आपकी स्वयं की अवधारणा

वह बीज है जिसे आप अवचेतना

की ज़मीन पर गिराते हैं।

सोना संतुष्टि और

प्रसन्नता महसूस करा रहा है

परिस्थितियों और घटनाओं की बाबत

दुनिया में प्रकटीकरण के लिए

जो मन की इन मनोवृत्तियों

की पुष्टि करते हैं।

नींद स्वर्ग का द्वार है।

जिसे भावना के रूप में लेते, सामने लाते हैं, अवस्थिति,

ऐक्शन या अंतरिक्ष में पिंडों के तौर पर।

इसलिए मनोकामना पूर्ण

होने की भावना में सोएं।

जैसे चेतना में वैसा ही पृथ्वी पर।

अध्याय तीन।

प्रार्थना।

नींद की तरह प्रार्थना भी

अवचेतना में प्रवेश है।

जब आप प्रार्थना करो, अपने

क्लोज़ेट में प्रवेश करो,

और जब अपना द्वार बन्द कर लो, तब पिता से प्रार्थना करना

जो गुप्त है और तेरा पिता जो रहस्यमयी है

आपको खुले तौर पर पुरस्कृत करेगा।

प्रार्थना नींद का भ्रम है, जो बाहरी दुनिया के प्रभाव को कम करता है

और मन को अधिक ग्रहणशील बनाता है

भीतर से सुझाव देने के लिए।

प्रार्थना में मन विश्राम की अवस्था में है

और ग्रहणशीलता प्राप्त भावना के समान

सोने से ठीक पहले।

प्रार्थना उतनी नहीं है

जितना आप मांगते हैं,

जैसे आप इसके स्वागत की

तैयारी कैसे करते हैं।

जो कुछ आप चाहते हो जब

तुम प्रार्थना करते हो

विश्वास करें कि उन्हें प्राप्त

कर लिया है और प्राप्त करेंगे।

केवल परिस्थिति की आवश्यकता है

क्या मानते हैं कि आपकी प्रार्थनाएं

पहले ही पूरी हो चुकी हैं।

आपकी प्रार्थना का उत्तर दिया जाना चाहिए

यदि आप उस भावना को मान

लेते हैं जो आपकी होगी

क्या आप पहले से ही अपने

उद्देश्य के आधिपत्य में थे।

जिस क्षण इच्छा को एक सिद्ध तथ्य

के रूप में स्वीकार करते हैं, अवचेतना अपनी प्राप्ति

के लिए साधन खोजती है।

तब सफलतापूर्वक प्रार्थना करने हेतु, इच्छा के आगे झुकना होगा जोकि

इच्छा पूर्ति का एहसास कराती है।

पूरी तरह से अनुशासित व्यक्ति

हमेशा एक सिद्ध तथ्य के रूप

में इच्छा के अनुरूप होता है।

वह जानता है कि चेतना ही

एकमात्र वास्तविकता है,

कि विचार और भावनाएँ चेतना के तथ्य हैं

और अंतरिक्ष में पिंडों

की तरह वास्तविक हैं।

इसलिए वह कभी किसी भावना

का मनोरंजन नहीं करता

जो उसकी खुशी में योगदान नहीं करता

भावनाओं के कारण हैं

उसके जीवन के कार्यों और

परिस्थितियों के बारे में।

दूसरी ओर, अनुशासनहीन आदमी

यह विश्वास करना मुश्किल लगता है कि

जो इन्द्रियों द्वारा नकारा जाता है

और आमतौर पर पूरी तरह से

स्वीकार या अस्वीकार करता है

इंद्रियों के प्रकट होने पर।

इस प्रवृत्ति के कारण

इंद्रियों के साक्ष्य पर भरोसा करने के लिए, प्रार्थना शुरू करने से पहले

उन्हें बंद करना जरूरी है,

यह महसूस करने की कोशिश करने

से पहले कि वे इनकार करते हैं।

जब भी आप इस मनःस्थिति में हों, "मुझे पसंद करना चाहिए,

लेकिन मैं नहीं कर सकता,"

आप जितना कठिन प्रयास करेंगे, आप उतना ही कम सक्षम होंगे

इच्छा के आगे झुकना।

आप कभी भी उसे आकर्षित

नहीं करते जो आप चाहते हैं

पर हमेशा उसे आकर्षित करें जिसके

होने के प्रति आप सचेत हैं।

प्रार्थना होने की भावना

को ग्रहण करने की कला है

और वह है जो आप चाहते हैं।

जब इंद्रियां आपकी इच्छा की

अनुपस्थिति की पुष्टि करती हैं, सभी चेतन प्रयास व्यर्थ हैं, सुझाव का विरोध करने के लिए

और सुझाव को तीव्र करने के लिए।

प्रार्थना इच्छा को पूरा करने की कला है

और जबरदस्ती इच्छा की पूर्ति नहीं।

जब भी आपकी भावना आपकी इच्छा के विपरीत हो, भावना विजयी होगी।

प्रमुख भावना हमेशा खुद को व्यक्त करती है।

प्रार्थना बिना प्रयास के होनी चाहिए।

मन की एक मनोवृत्ति को

ठीक करने के प्रयास में

जो इन्द्रियों द्वारा नकारी

जाती है, प्रयास घातक है।

एक सिद्ध तथ्य के रूप में

इच्छा सफलतापूर्वक पाने के लिए, आपको एक निष्क्रिय अवस्था बनानी होगी, एक प्रकार की श्रद्धा या ध्यान का प्रतिबिंब

उस भावना के समान जो नींद को आगे बढ़ाती है।

ऐसे आराम की अवस्था में,

मन वस्तुनिष्ठ दुनिया से भटक गया है

और एक व्यक्तिपरक अवस्था की

वास्तविकता महसूस करता है।

यह एक ऐसी अवस्था है

जिसमें आप सचेत होते हैं

और अपनी आँखें हिलाने या खोलने में सक्षम

लेकिन ऐसा करने की कोई आकांक्षा नहीं है।

इस निष्क्रिय अवस्था को

बनाने का एक आसान तरीका

आरामदायक कुर्सी या बिस्तर पर आराम करना है।

यदि बिस्तर पर हैं, तो

अपनी पीठ के बल लेट जाएँ

अपने सिर और शरीर के साथ एक स्तर पर, आंखें बंद करें और कल्पना

करें कि आप सो रहे हैं।

महसूस करें कि आपको नींद आ रही है, अधिक नींद,

बहुत अधिक नींद।

थोड़ी देर में, दूर चले जाने का एहसास

एक सामान्य आलस्य और सभी

इच्छाओं के खोने के साथ

ले जाने को आपको ढँक देता है।

आप एक सुखद आराम का अनुभव करते हैं

और अपनी स्थिति को बदलने

के लिए इच्छुक नहीं है,

हालांकि अन्य परिस्थितियों में

आप बिल्कुल भी सहज नहीं होंगे।

जब यह निष्क्रिय अवस्था पहुँच जाती है, कल्पना कीजिए कि आपकी

इच्छा पूरी हो चुकी है,

यह साकार नहीं हुई, बल्कि

केवल इच्छा पूरी हुई।

कल्पना करें चित्रित रूप में

जीवन में क्या पाना चाहते हैं, फिर महसूस करें कि इसे

पहले ही हासिल कर चुके हैं।

विचार छोटे छोटे भाषणों को जन्म देते हैं, जिसे प्रार्थना की निष्क्रिय

अवस्था में सुना जा सकता है

घोषणाओं के बिना।

हालाँकि, निष्क्रियता की यह डिग्री

आपकी प्रार्थनाओं की प्राप्ति

के लिए आवश्यक नहीं है।

एक निष्क्रिय अवस्था बनाने

के लिए बस इतना ही आवश्यक है

और मनोकामना पूर्ण होने का अनुभव करें।

जिसकी आपको आवश्यकता है, वह

इच्छा पहले से ही पूर्ण हो चुकी।

आपको इसे देने के लिए आपको किसी

सहायक की आवश्यकता नहीं है, यह अब तुम्हारी है।

अपनी इच्छाओं को अस्तित्व में बुलाओ

कल्पना करके और महसूस करके

कि आपकी इच्छा पूरी हुई है।

जैसे अंत स्वीकार किया जाता है, आप संभावित विफलता के प्रति

पूरी तरह से उदासीन हो जाते हैं

अंत की स्वीकृति के लिए उस

अंत के लिए साधन चाहते हैं।

जब आप प्रार्थना के क्षण से निकलते हैं, यह ऐसा है जैसे आपको दिखाया गया हो

एक नाटक का सुखद और सफल अंत, यद्यपि यह नहीं दिखाया गया था

कि वह अंत कैसे प्राप्त हुआ।

यद्यपि अंत के साक्षी होने के बावजूद

बिना किसी विरोधी जलवायु

अनुक्रम की परवाह किए

आप शांत और सुरक्षित रहें

इस ज्ञान में कि अंत को पूरी

तरह से परिभाषित किया गया है।

चौथा अध्याय।

आत्मा को महसूस करना।

न तो पराक्रम से और न ही शक्ति

से, बल्कि मेरी आत्मा से,

मेज़बानों के यहोवा की वाणी।

वांछित अवस्था की भावना में उतरें

उस एहसास को मानकर जो आपका होगा

क्या आप पहले से ही वही

थे जो आप बनना चाहते हैं।

जैसा कि आप मांगी गई अवस्था

की भावना को पकड़ते हैं,

आप इसे ऐसा करने के सभी

प्रयासों से मुक्त हो गए हैं

क्योंकि ऐसा पहले से ही है।

एक निश्चित भावना जुड़ी हुई थी

मनुष्य के मन में हर विचार के साथ।

अपनी साकार इच्छा से

जुड़ी भावना को कैद करें

उस एहसास को मानकर जो तुम्हारा होगा

क्या आप पहले से ही उस चीज़ के

आधिपत्य में थे जो आप चाहते हैं

और आपकी इच्छा स्वयं सिद्ध हो जाएगी।

आस्था को महसूस करना.

अपने विश्वास, भावना के

अनुसार, उसे आत्मसात करें।

आप जो चाहते हैं उसे आप

कभी आकर्षित नहीं करते हैं, लेकिन हमेशा वही जो तुम हो।

मनुष्य जैसा होता है, वैसा ही देखता है।

जिसके पास है उसे दिया जाएगा

और जिसके पास नहीं है वह ले लिया जाएगा।

जो आप स्वयं के बाबत जैसा

महसूस करते हैं, वह आप हैं

और आपको वह दिया जाता है जो आप हैं।

तो मान लीजिए वह एहसास जो आपका होगा

क्या आप पहले से ही अपनी

इच्छा के आधिपत्य में थे

और आपकी इच्छा पूरी होनी चाहिए।

तो भगवान ने मनुष्य को अपनी

छवि के अनुसार निर्मित किया

भगवान की छवि में उसने उसे बनाया।

यह मन तुम में रहे जो मसीह यीशु में भी था, जो भगवान के रूप में है,

भगवान के बराबर होना पाप नहीं है।

आप वही हैं जो आप स्वयं को मानते हैं।

परमेश्वर या यीशु में विश्वास करने के बजाय, विश्वास करें कि आप ही परमेश्वर

हैं या आप ही यीशु हैं।

वह मुझ पर विश्वास करता है, जो

काम मैं करता हूँ वह करता है

वह जो विश्वास करता है मैं

उन कार्यों पर अमल करता हूँ

उसे भी करना चाहिए।

यीशु को परमेश्वर के कार्य

करना विचित्र नहीं लगा

क्योंकि वह स्वयं को भगवान मानता था।

मैं और मेरे पिता एक ही हैं।

कर्म करना स्वाभाविक है

उसके लिए जिसे खुद मानते हो।

इसलिए आप जो बनना चाहते हैं, उसके होने के एहसास में जिएँ

और कि तुम हो।

जब कोई व्यक्ति उसे दी गई सलाह

के मूल्य में विश्वास करता है

और इसे लागू करता है,

वह अपने भीतर स्थापाना करता

है सफलता की वास्तविकता को।